वायु प्रदूषण पर निबंध Essay On Air Pollution in Hindi: वायु में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा, प्रकाशसंश्लेषी क्रियाविधि का ही परिणाम है.
शुष्क वायु में लगभग 79% नाइट्रोजन, 20.9% ऑक्सीजन, 0.03% कार्बन डाई ऑक्साइड व शेष भाग अन्य गैसें नियोन, हीलियम, क्रिप्टोन आदि होती है.
जीवों में श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन तथा प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक CO2 (कार्बनडाई ऑक्साइड) का मुख्य स्रोत वायुमंडल ही है. वायुमंडलीय प्रदूषण का मुख्य कारण मानव ही है.
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कार्बन मोनोक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, हाइड्रो कार्बन मिश्रण व वायु में निलंबित सूक्ष्म कालिख, धुआ व धूल के कण वायु के मुख्य प्रदूषक (Air pollutants) है.
इन सभी प्रदूषकों का स्रोत उद्योगों व घरों में कोयला, पेंट्रोल, गैस का भट्टियों, चूल्हों व अंगीठियों तथा स्वचालित वाहनों में डीजल का जलना है.
मानव के लिए शुद्ध वायु का महत्व है. वायु के बिना मनुष्य तथा जीव जन्तु अधिक समय तक जीवित नही रह सकते, शुद्ध सूखी वायु जो पृथ्वी के सभी जीवों के आवश्यक है.
परिभाषा- वे अवयव जो कणीय, द्रवीय तथा गैसीय अवस्था में वायुमंडल में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होते है, एवं जिनके द्वारा उत्पन्न वनस्पति, मानव व अन्य जीवों तथा द्रव्यों पर उत्पन्न हानिकारक प्रभावों को स्पष्ट रूप से आँका जा सकता है, उसे वायु प्रदूषण कहते है.
वायु प्रदूषण मुख्यतः निम्न प्रकार से वर्गीकृत किये जा सकते है.
वायु प्रदूषण के मुख्यत दो स्रोत होते है.
कोयले व अन्य प्राकृतिक इंधनों के जलने से निकलने वाले धुंए के साथ सल्फर (गंधक) के कई ऑक्साइड निकलते है. सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) एक हानिकारक प्रदूषक है
यह नेत्र, फुक्फुस व गले की श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित कर कई रोग पैदा करती है. SO2 पौधों में रन्धों द्वारा प्रवेश कर जल के साथ H2 SO4 बनाता है, यह अम्ल पर्णहरित को विघटित करता है.
लाइकेन व ब्रायोफाईट पादप SO2 से शीघ्र प्रभावित होते है. यह गैस उन्हें मार देती है, लाइकेन को इस प्रदूषक का सूचक (INDICATOR) माना जाता है.
धुँआ कुहरे के साथ मिलकर धूम कुहरा (SMOG) बनाता है. इसमें SO2, O2 से अभिक्रिया कर SO4 बनाती है, जो जल के साथ H2 SO4 (गंधक का अम्ल) बन जाता है.
यह अम्ल इमारतों के पत्थरों व दीवारों को संक्षारित (CORRODE) करता है. मथुरा में पेंट्रोल शोधन कारखाने स्थापित होने से इस अम्ल से ताजमहल के संगमरमर (MARBLE) के सक्षारित होने की आशंका बढ़ गईं है.
प्राकृतिक इंधनों के जलने से निकली ऑक्सीकृत NO3 बनाती है. यह NO3 जल के साथ मिलकर हानिकारक HNO3 (नाइट्रिक अम्ल) बनाती है, जो वर्षा के जल के साथ भूमि पर आ जाता है. यह वर्षा अम्लीय वर्षा (ACID RAIN) होती है.
अम्लीय वर्षा से मृदा की अम्लीयता बढ़ जाती है, जो मृदा के उपजाऊपन को नष्ट करती है. यह इमारतों, रेल पटरियों, स्मारकों, मूर्तियों को संक्षारित कर क्षति पहुचाती है. ईधन के अपूर्ण दहन से CO (कार्बन मोनोक्साइड) बनाती है. वायुमंडलीय कुल प्रदूषकों का लगभग 50% CO है.
श्वास के साथ यह विषाक्त गैस मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर रुधिर के हीमोग्लोबिन से संयोजित हो जाती है. इस संयोजन की दर हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन संयोजन की दर से 210 गुणा अधिक है. परिमाणत मनुष्य के शरीर में O2 की कमी हो जाती है.
धुंए के अन्य कणीय अंश जैसे कि कालिख (SHOOT) टार, धूलकण आदि प्रकाश को कम कर देते है. ये भूमि पर धीरे धीरे जमते है और पशु व मनुष्य के शरीर में श्वसन द्वारा जाकर श्वासनली व फेकड़ों के रोग पैदा करते है. ये धातु, पेंट की हुई सतहों, वस्त्रों, कागज व चमड़े को क्षति पहुचाते है.
वाहनों में पेंट्रोल व डीजल के जलने से निकलने वाली वे सभी गैसें है, जिनका अध्ययन हमने धुंए के अंतर्गत किया है. वायु प्रदूषण के 60 प्रतिशत प्रदूषण के यही विरेचक उत्तरदायी है.
औसत 1000 गैलन पेंट्रोल के जलने से लगभग 3200 पाउंड CO, 200- पाउंड कार्बनिक अम्ल, 2 पाउंड अमोनिया व 0.3 पाउंड ठोस कार्बन कण निकलते है.
हाइड्रोकार्बन के अपूर्ण दहन से बनने वाला 3-4 बैंजिपायरिन, फुक्फुस कैंसर का कारण है. नाइट्रोजन के ऑक्साइड आँखों में जलन, नाक व श्वास नली के रोग उत्पन्न करते है.
वातावरण में वायु प्रदूषकों की उपस्थिति से वायुमंडल की स्वच्छ एवं शुद्ध वायु के गुणधर्मों में काफी बदलाव आ जाते है. मुख्य असर जो हमें दिखाई देता है. वह कोहरा और आद्रता की उपस्थिति है.
इससे वातावरण की पारदर्शिता काफी कम हो जाती है तथा इसका असर मानव, जीव जन्तुओं तथा वनस्पति की वृद्धि पर पड़ता है. कोहरे की उपस्थिति के कारण द्र्श्यता कम हो जाती है तथा शहरों में दुर्घनाओं का खतरा बढ़ जाता है.
वायु प्रदूषण का एक और मुख्य प्रभाव धरती पर आने वाली सूर्य की किरणों का प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी पर कम मात्रा में पहुचना है. शहरी सीमा में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में सूर्य की किरणों से उत्पन्न ताप का स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है.
वायु प्रदूषण का आर्थिक पक्ष यह है कि कई भव्य इमारते नष्ट हो रही है. कलात्मक कार्यों की क्षति हो रही है. तथा इनके रखरखाव के लिए प्रतिवर्ष काफी अधिक धन खर्च करना पड़ता है.
वायु की उपस्थित प्रदूषक वनस्पति, जीव जन्तुओं तथा मानव पर घातक प्रभाव डालते हैं. पेड़ पौधों में अनेक बीमारियों को उत्पन्न करते है. तथा उनकी वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालते है.
कुछ पौधें हालांकि काफी संवेदनशील एवं ग्राही होते है तथा वायु प्रदूषण रोकने में अहम भूमिका निभाते है. नगरीय इलाकों में जहाँ वायु प्रदूषण का प्रभाव अधिक होता है वहां हरित पट्टी लगाने तथा उसे विकसित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है.
कल कारखानों में काम करने वाले कर्मिकों में पायी जाने वाली कुछ मुख्य बीमारियाँ इस प्रकार है- फेफड़े की बीमारी, लंग फाइब्रोसिस, अस्थमा, गले का दर्द, निमोनिया.
इनका कारण है कि वायु में उपस्थित बेन्जोपाईरिन या बहुकेन्द्रित हाइड्रोकार्बन जो वायुमंडल में मुक्त अणु के रूप में रहता है.
कोयले की खदान में काम करने वालों को आटे की चक्की पर काम करने वालों को भी न्यूमोकोनिओसिस हो जाता है. हवा में उपस्थित so2 तथा नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की अधिकता होने से मनुष्यों में ह्रदय रोग, कैंसर, मधुमेह आदि की बीमारियाँ दिन प्रतिदिन बढ़ रही है.